महाराष्ट्र पुरोगामी राज्य है आज अगर हम कहने लगे तो बहुत बड़ा साहसी वाक्य
होगा। क्योंकि हाल ही में डॉ. नरेंद्र दाभोळकर और कॉमरेड़ गोविंद पानसरे जैसे समाजसेवियों की
हत्या होना पुरोगामी न होने के दांवे को पुष्ट करती है। महाराष्ट्र ही क्यों भारत
देश के पुरोगामित्व और विज्ञाननिष्ठता पर सवालिया निशाना बना हुआ है। ऐसी कई
घटनाएं है जो हमारे लिए बहुत बड़ी भद्दी गाली लगती है। अगर ताजा खबरें और घटनाओं को
गिनना शुरू करे तो कहा जाएगा कि भारत और भारत का एक राज्य होने के नाते महाराष्ट्र
किसी भी नजरिए से विज्ञाननिष्ठ नहीं है। कई घटना और प्रसंगों का जिक्र होगा परंतु
यहां मेरे चिंतन का केंद्र है महिलाओं को मंदिर प्रवेश के लिए रोका जाना। कानूनी
अधिकार और संविधानिक अधिकार के नियम तथा धाराओं पर बात करने की जरूरत ही नहीं है।
दुनियाभर में पुरुषों के लिए जो प्राकृतिक अधिकार है वहीं अधिकार स्त्रियों के लिए
उपलब्ध है। स्वार्थभरी सामाजिक व्यवस्था में पूरे विश्वभर में महिलाओं को इस
अधिकारों से रोका जाना उनके प्रति अन्याय तो है ही परंतु पुरुषों के लिए कोई गर्व
की बात नहीं है। यहां दुनिया और विश्व का मंच बड़ा व्यापक होगा। हमारे देश में क्या
हो रहा है। महिलाओं को मंदिरों में और मंदिरों के गर्भगृह में प्रवेश के लिए सालों
से रोका जाना कौनसे प्रगत, विज्ञाननिष्ठ और पुरोगामित्व की
पहचान है? पूर्ण आलेख पढने के लिए 'रचनाकार' में प्रकाशित आलेख की लिंक को क्लिक करें - नारी का समानाधिकार डॉ. विजय शिंदे
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