भविष्य में वैश्विक स्तर पर भाषिक तौर से कई बदलाव होने की संभावनाएं बन रही
है। उसका मूल कारण वैश्विकरण है। देश-दुनिया कई मायनों में एक समान स्तर पर काम
करने की मानसिकता से गुजर रहे हैं। आर्थिक और औद्योगिक प्रगति मनुष्य को एक-दूसरे
के पास लेकर आ रही है। इन स्थितियों में आपसी विचार-विमर्श और वैचारिक आदान-प्रदान
के लिए भाष की मदत लेनी पड़ती है। हर एक को देश और दुनिया की सभी भाषा का ज्ञान हो
या कोई एक व्यक्ति एक से ज्यादा भाषाओं में निपुण होगा कहना गलत होगा। ऐसी
स्थितियों में अनुवाद की एहं भूमिका रहती है। भारतीय और वैश्विक साहित्य जगत में
अनुवाद की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। अनुवाद के माध्यम से देश-दुनिया का प्रसिद्ध
साहित्य, वैचारिक साहित्य, ज्ञानात्मक साहित्य, तंत्रविज्ञान, विज्ञान और तमाम
प्रकारों की सामग्री हमारे लिए उपलब्ध हो रही है। लेकिन इस अनुवाद की प्रक्रिया
सहज और सरल नहीं है। कई प्रकार की मुश्किलों से पार करता यह कार्य लेखक और अनुवादक
की कड़ी परीक्षा लेता है। इस परीक्षा में सफल होनेवाला व्यक्ति ही सही अनुवाद को
अंजाम तक लेकर जा सकता है। वैचारिक साहित्य के अनुवाद करते समय वैसी ही कई
समस्याओं का सामना करना पड़ता है। कई प्रकार की मानसिकताओं और दबावों से गुजरना पड़ता
है। निरंतरता अगर खंड़ित हो गई तो दुबारा अनुवाद की गाडी को पटरी पर लाना भी
मुश्किल होता है।
कुलमिलाकर यह कहा जा सकता है वर्तमान और भविष्य में अनुवाद
के क्षेत्र में साहित्य, वैचारिक साहित्य और इसके अलावा भी अन्य प्रकार की सामग्री
के अनुवाद की असीम संभावनाएं हैं और आवश्यकता भी। यह वैश्विक सामग्री को प्रचारित
और प्रसारित करती है तथा सबको एक साथ विकास के रास्तों पर लेकर जाने की क्षमता
रखती है। संपूर्ण आलेख पढने के लिए 'रचनाकार' ई-पत्रिका के इस लिंक पर क्लिक करें - वैचारिक साहित्य के अनुवाद का महत्त्व - डॉ. विजय शिंदे