सिनेमा का क्षेत्र चंद सालों में ही बहुत बड़ा बन
गया है। इसका इतिहास काल के नाते बहुत छोटा परंतु व्यापकता के नाते बहुत बड़ा है।
दुनियाभर की विविध भाषाओं में अनगिनत फिल्में बनी हैं और अब भी बन रही है। फिल्मों
का मूल स्रोत साहित्य की विशेषताओं से प्रभावित है। साहित्यकारों से लिखी
कथा-कहानियां फिल्मों का विषय होती हैं। अतः साहित्य वर्गीकरण के जो विविध प्रकार
है वैसे ही फिल्मों का वर्गीकरण होता है। फिल्म निर्माण विविध प्रक्रियाओं के तहत
विविध लोगों से होता है, अतः उसमें वैविध्य अपने-आप आता है। दुनिया में एक से अधिक
विषयों को लेकर फिल्में बनाई जाती है, निर्माण शैली में विविधता होती है, तकनीकों
में भी विविधता होती है और यहीं विविधता उसे वर्गीकृत करती है। वर्गीकरण में मूल
आधार निर्माण शैली (जॅनर) होता है। जॅनर के चलते सिनेमा के कई प्रकार बनते हैं,
उसे विश्लेषित किया जा सकता है।
फिल्मों को बनाते वक्त एकाध विषय को कौनसी
पद्धति से विश्लेषित किया है या उसके विश्लेषण के दौरान कौनसे प्रकारों में उसे
बिठाने की कोशिश की है; फिल्म के भीतर कौनसा विषय चर्चा में लिया है, जिसके आसपास
सिनेमा की पूरी कथा गुत्थी जा रही है; फिल्म में दर्शकों को भावुक बनाने के लिए
कौनसी भावनाओं का इस्तेमाल किया गया है या भारतीय नाट्यशास्त्र के हिसाब से कौनसे
रस का अधिक इस्तेमाल किया है और निर्माण का प्रारूप कौनसा है? आदि के आधार पर
फिल्म का जॅनर वर्गीकृत करने की कोशिश होती है। दूसरा महत्त्वपूर्ण तथ्य यह भी
ध्यान में रखना चाहिए कि कोई फिल्म किसी एक जॅनर के साथ बनी है या बनी जानी चाहिए
ऐसा नहीं होता है। एक फिल्म में कई उपजॅनरों का उपयोग
किया जाता है। हां यह बताया जा सकता है कि किसी फिल्म को दर्शक देखें तो उसका एकदम
उभरकर आनेवाला जॅनर कौनसा है। फिल्म निर्माण कर्ताओं के सामने किसी फिल्म को आकार
देते वक्त एक प्रमुख जॅनर होता ही है और उसे केंद्र में रखकर उसकी आवश्यकता के
अनुसार अन्य जॅनरों का भी उपयोग किया जाता है। इसके पहले भी इस बात की ओर संकेत
किया था कि फिल्म निर्माताओं का उद्देश्य फिल्म को कोई विशिष्ट फॉर्म में ढालना
नहीं होता है, फिल्म दर्शकों को पसंद आनी चाहिए। उनके अनुकूल उसे उपलब्ध करवा
देना, व्यावसायिक सफलता पाना आदि कई फिल्मों के उद्देश्य होते हैं। इन उद्देश्यों को पाने के लिए निर्माणकर्ता, अभिनेता,
तकनीशियन, संगीतकार, गीतकार तथा अन्य छोटा-बड़ा व्यक्ति ताकत लगा देता है, इनके
चलते फिल्म आंतरिक खूबसूरती के साथ बाहरी खूबसूरती से भी लबालब भर जाती है। फिल्म
का यहीं सौंदर्य उसे कई शैलियों (जॅनरों) में विभाजित करता है। प्रस्तुत आलेख The South Asian
Academic Research Chronicle ई-पत्रिका के जून 2016 के अंक में प्रकाशित हुआ है, उसकी लिंक है -सिनेमा की शैली (Genre of Film) http://www.thesaarc.com/files/documents/20160606.pdf
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