मंगलवार, 17 दिसंबर 2019

फिल्म संपादन (Film Editing)



फिल्म संपादन एक रचनात्मक और तकनीकी तरीका है। फिल्म निर्माण, शूटिंग, साउंड़ रिकॉर्डिंग, पृष्ठभूमि संगीत रिकॉर्डिंग के बाद फिल्मों का संपादन होता है। विभिन्न तकनीकों, कंप्यूटर सॉफ्टवेयरों के आधार पर फिल्मों का संपादन किया जा सकता है। आधुनिक टेक्नॉलॉजी का इतना अधिक विकास हो गया है कि संपादन में आसानी बनी है। अतः पहले इसके संपादन के लिए जितना समय लगता था उतना अब नहीं लग रहा है। आधुनिक तकनीकों के चलते फिल्मों में पहले से अधिक साफसुथरापन आ गया है। यह साफसुथरापन दृश्य और श्रव्य (वीड़ियो और ऑड़ियो) में देखा जा सकता है। फिलहाल फिल्मों को तेजी से संपादन करने के लिए डिजिटल प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल किया जा रहा है।
          फिल्म संपादक फिल्माए गए कच्चे दृश्यों और आवाजों के साथ काम करता है। फुटेज का चयन, शॉटस् और उनमें संयोजन तथा पहले दृश्य के खत्म होने के बाद दूसरे दृश्य का आरंभ तथा उन दोनों की विषय के साथ संगति बिठाकर गतिशीलता बनाए रखने की जिम्मेदारी संपादक की होती है। फिल्म संपादन कला और कौशल का अद्भुत मिलाप है। संपादकीय टेबल पर जब फिल्म आती है तब संपादक, निर्देशक, सहायक निर्देशक आदि महत्त्वपूर्ण लोगों के साथ बैठकर विविध शॉटों का चुनाव करता है और बाद में अपने कौशल, अभ्यास तथा ज्ञान के बल पर जोड़ने की प्रक्रिया शुरू करता है। इस प्रक्रिया को जोड़ते वक्त जितना कला और तकनीकी कार्य है उतना ही सृजनात्मक कार्य है। क्योंकि संपादक को साहित्य और फिल्मी कलाओं से परिचित होना पड़ता है, उसकी सूक्ष्मताओं से अवगत होना पड़ता है तथा सृजनप्रक्रिया से भी वाकिफ होना पड़ता है; तभी वह पटकथा और संवादों में पिरोयी गई कहानी को सुसूत्रता से जोड़ सकता है। फिल्म संपादन को अदृश्य कला के रूप में जाना जाता है । इसका कारण यह है कि वह पर्दे के पीछे रहकर फिल्म को अंजाम तक पहुंचाता है। संपादक आम तौर पर एक फिल्म के निर्माण में गतिशील भूमिका निभाते हैं। डिजिटल संपादन के आगमन के साथ फिल्म संपादन में गति आ गई है और एक संपादक की जगह पर अनेक संपादक फिल्मों में योगदान दे रहे हैं। वे अपने-अपने क्षेत्र के माहिर विद्वान होते हैं। चित्र संपादक केवल चित्रों का संपादन, ध्वनि संपादक केवल ध्वनि संपादन, संगीत संपादक संगीत का संपादन, दृश्य संपादक दृश्य संपादन करता है। यह सारे संपादकीय कार्य मुख्य संपादक के निर्देशों से होते हैं और अंत में निर्देशक के साथ बैठकर यह पूरी टीम दुबारा पूर्ण हो चुके संपादकीय कार्य का अवलोकन करती है। निर्देशक की मान्यता के बाद जोड़ने की प्रक्रिया शुरू होती है। संपूर्ण आलेख पढने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें - फिल्म संपादन (Film Editing)

शुक्रवार, 2 अगस्त 2019

आाधुनिक भारत के शिल्पी - महाराजा सयाजीराव गायकवाड





















     महाराजा सयाजीराव गायकवाड़ आधुनिक भारत की निर्मिति प्रक्रिया के एक शिल्पी हैं। राज्य चलाना एक शास्त्र है। इसलिए राजा का ज्ञानसंपन्न होना अत्यधिक जरूरी है, इसे जानकर सयाजीराव ने स्वयं ज्ञान पाया। दुनियाभर की शासन पद्धतियों का अध्ययन किया। सुशासन और जनता के ज्ञानात्मक प्रबोधन कार्य से जनकल्याण का व्रत हाथ में लिया।
       शिक्षण और विज्ञान ही प्रगति तथा परिवर्तन का साधन है, इसे महाराजा ने बखूबी जाना था इसलिए मुफ्त और अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा, सुशासन, विधि-न्याय, खेती, उद्योगों को मदद, सामाजिक-धार्मिक सुधार, जाति-धर्मों के बीच की उच्च-नीचता को खत्म करके समता, मानवता और सर्वधर्म समभाव के मार्ग को चुना था।
       महाराजा सयाजीराव शैक्षिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और वाङ्मयीन कलाओं के आश्रयदाता थे। देश के अनेक युगपुरुषों और संस्थाओं को उन्होंने सहायता प्रदान की है; पितामह दादाभाई नौरोजी, नामदार गोखले, लोकमान्य तिलक, महात्मा गांधी, न्यायमूर्ति रानड़े, महात्मा फुले, राजर्षि शाहू, डॉ. आंबेड़कर, पं. मालवीय, कर्मवीर भाऊराव, स्वातंत्रवीर सावरकर, महर्षि शिंदे आदियों का उसमें प्रमुखताः से नामोल्लेख किया जा सकता है। अनेक संस्था और व्यक्तियों को महाराजा की ओर से करोड़ों रुपयों की मदद हो चुकी है, इस प्रकार से उनका यह दाता रूप उनकी अलगता और अद्भुतता को बयां करता है।
       महाराजा सयाजीराव गायकवाड़ स्वातंत्रता सेनानियों के समर्थक और प्रतिभाशाली लेखक है, उनके व्यक्तित्व की यह नई पहचान बनी है। उनकी किताबें, भाषण, पत्र, आदेश और दैनंदिनी देश का अनमोल खजाना है।
       सुशासन और जनकल्याण में मुक्ति की खोज करनेवाले सयाजीराव का बलशाली भारत ही सपना था। उसे पूरा करने का पवित्र कार्य प्रत्येक भारतीय को करना है।

रविवार, 17 फ़रवरी 2019

फिल्मों का संवाद लेखन


फिल्म के निर्माण की अनेक महत्त्वपूर्ण कड़ियों में से अहं कड़ी हैं - संवाद। संवाद सृजन प्रक्रिया के साथ जुड़नेवाली कला है। संवादों के माध्यम से कहानी को कथात्मक रूप से संवादात्मक और नाटकीय रूप प्राप्त होता है, जिसका उपयोग अभिनय के दौरान होता है। फिल्मों की व्यावसायिक और कलात्मक सफलता भी तस्वीरों की सूक्ष्मताओं और संवाद के आकर्षक होने पर निर्भर होती है। न केवल भारत में बल्कि विश्व सिनेमा में आरंभिक फिल्में अवाक (बिना आवाज) की थी। इन्हें सवाक (वाणी के साथ, आवाज के साथ) होने में काफी समय लगा। हालांकि सिनेमा के निर्माताओं की मंशा इन्हें आवाज के साथ प्रदर्शित करने की थी परंतु तकनीकी कमजोरियां और कमियों के चलते यह संभव नहीं हो सका। धीरे-धीरे दर्शकों का और सारी दुनिया का सिनेमा के प्रति आकर्षण उसमें नई-नई खोजों से इजाफा करते गया और फिल्में सवाक बनी और आगे चलकर रंगीन भी हो गई। चित्रों के माध्यम से प्रकट होनेवाली कथा-पटकथा संवाद के जुड़ते ही मानो लोगों के मुंह-जुबानी बात करने लगी। लोग पहले से अधिक उत्कटता के साथ फिल्मों से जुड़ने लगे और विश्वभर में सिनेमा का कारोबार दिन दुनी रात चौगुनी प्रगति करने लगा। फिल्मों के लिए चुनी कहानी को पटकथा में रूपांतरित करने के लिए और पटकथा को संवादों में ढालने के लिए आलग-अलग व्यक्तियों की नियुक्तियां होने लगी। इसमें माहिर लोग पात्रों के माध्यम से अपने संवाद कहने लगे और आगे चलकर यहीं संवाद लोगों के दिलों-दिमाग की बात भी करने लगे। संवादों का फिल्मों के साथ जुड़ते ही फिल्में सार्थक रूप में जीवंत होने की ओर और एक कदम उठा चुकी। प्रस्तुत आलेख 'रचनाकार' ई पत्रिका के फरवरी अंक में प्रकाशित हुआ है। आगे पढने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें - फिल्मों का संवाद लेखन (Dialogue Writing)