शुक्रवार, 8 अगस्त 2014

साहब, दीदी और गुलाम



         'साहब, दीदी और गुलाम' मराठी के प्रसिद्ध लेखक दया पवार की मराठी कहानी है। उसका हिंदी अनुवाद 'रचनाकार'  ई-पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। इनका पूरा नाम दगडू मारुती पवार है, साहित्यिक जगत् में दया पवार के नाम से इनकी पहचान बनी हैं। इनका जन्म अहमदनगर जिले के धामणगांव में इ. स. 1935 में हुआ। दलित जाति के भीतर जन्म पाने के कारण बचपन से दलितों के साथ होने वाले अन्याय-अत्याचार से भलिभांति वाकिफ थे। इनके ‘बलुतं’ नामक पहली आत्मकथात्मक साहित्य कृति के कारण मराठी साहित्य एवं दलित साहित्य में नया मोड आ गया। लेखक ने प्रस्तुत कृति में अपने आपको केंद्र में रखा और सारे दलितों के जीवन को वाणी देने का प्रयास किया है। इनकी इस कृति से प्रेरणा पाकर मराठी साहित्य में दलित लेखकों की एक बडी फौज निर्माण हो गई। ‘बलुतं’ आत्मकथन के बाद कहानीसंग्रह - ‘जागल्या’, ‘पासंग’, कवितासंग्रह – ‘कोंडवाडा’ ‘धम्मपद’, अन्य - ‘पाणी कुठंवर आलं गं बाई’, ‘विटाळ’ आदि भी इनकी रचनाएं काफी चर्चित रही है। महानगरीय जीवन के संघर्ष, पैसा और रिश्तों पर प्रकाश डालती कहानी पाठकों को पसंद आएगी। यहां आपके लिए 'रचनाकर' की लिंक दे रहा हूं, आगे पढे - मराठी कहानी – साहब, दीदी और ग़ुलाम

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