लेखक के द्वारा लिखी
कहानी से परदे पर उतरनेवाली फिल्म तक की प्रक्रिया बहुत लंबी है। यह प्रक्रिया
विविध चरणों, आयामों और संस्कारों से अपने मकाम तक पहुंचती है। एक लाईन में बनी
फिल्म की कहानी या यूं कहे कि दो-तीन पन्नों में लेखक द्वारा लिखी कहानी को फिल्म
में रूपांतरित करना एक प्रकार की खूबसूरत कला है। इस रूपांतर से न केवल लेखक चौकता
है बल्कि फिल्म के साथ जुड़ा हर शख्स चौकता है। टूकड़ों-टूकड़ों में बनी फिल्म जब एक
साथ जुड़ती है तो एक कहानी का रूप धारण करती है। फिल्मों का इस तरह जुड़ना दर्शकों
के दिलों-दिमाग पर राज करता है। लेखक से लिखी कहानी केवल शब्दों के माध्यम से बयान
होती है परंतु फिल्म आधुनिक तकनीक के सहारे से ताकतवर और प्रभावी बनती है। "सिनेमा ने
परंपरागत कला रूपों के कई पक्षों और उपलब्धियों को आत्मसात कर लिया
है – मसलन आधुनिक उपन्यास की तरह यह मनुष्य की भौतिक क्रियाओं
को उसके अंतर्मन से जोड़ता है, पेटिंग
की तरह संयोजन करता है और छाया तथा
प्रकाश की अंतर्क्रियाओं को आंकता है।
रंगमंच, साहित्य, चित्रकला,
संगीत की सभी
सौंदर्यमूलक विशेषताओं और उनकी मौलिकता से सिनेमा आगे निकल गया है। इसका
सीधा कारण यह है कि सिनेमा में साहित्य (पटकथा, गीत), चित्रकला
(एनीमेटेज कार्टून, बैकड्रॉप्स), चाक्षुष
कलाएं और रंगमंच का अनुभव, (अभिनेता, अभिनेत्रियां)
और ध्वनिशास्त्र
(संवाद,
संगीत) आदि शामिल हैं। आधुनिक तकनीक की
उपलब्धियों का सीधा लाभ सिनेमा लेता है।" (संदर्भ
विकिपिड़िया) यहां हमारा उद्देश्य सिनेमा निर्मिति का संक्षिप्त परिचय करवाना
है और इस परिचय के दौरान फिल्म निर्माण के चरण और फिल्म निर्माण की प्रक्रिया
अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। फिल्मों का पांच चरणों में निर्माण होता है। विकास,
पूर्व निर्माण, निर्माण, उत्तर उत्पादन (पोस्ट प्रोड़क्शन), वितरण व प्रदर्शनी इन
पांच चरणों के तहत फिल्में बनती हैं। इन पांच चरणों का विश्लेषण पढने के लिए इस लिंक पर जाए http://www.researchfront.in/23%20OCT-DEC%202016/14.pdf
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