फिल्म का निर्देशन करना जितना तकनीकी कार्य है
उतना ही कलात्मक कार्य है। फिल्म निर्देशक निर्देशन की दिशा तय करता है कि फिल्म
को कहा लेकर जाना है। मूल कहानी को निर्माता-निर्देशक जब सुनते हैं या पढ़ते हैं तब
उन्हें तुरंत पता चलता है कि इस कहानी पर फिल्म बनने की संभावनाएं है या नहीं है।
जब किसी कहानी में फिल्म के लिए सफलता के सूत्र मिलते हैं तब एक-दूसरे की अनुमति
से उस पर कार्य होता है और विभिन्न लोगों की नियुक्तियां शुरू होती है। निर्माताओं
की अनुमति के बाद निर्देशक पटकथा लेखक से पटकथा लिखवा लेता है, उसे लिखवाते वक्त
उन सारी बातों को उसमें भर देता है जो कलात्मक तो हो ही पर व्यावसायिक सफलता हासिल
करने की क्षमता भी रखती हो। अर्थात् निर्देशन कौशल फिल्म सृजन (निर्माण) प्रक्रिया
और तकनीकी प्रक्रिया के बीच का पुल होता है जिस पर एक सफल फिल्म संवार होकर अपने
मकाम तक पहुंचती है।
फिल्म
निर्माण प्रक्रिया में निर्देशन एक अलग और स्वतंत्र कार्य है परंतु आजकल देखा जा
रहा है कई प्रतिभा संपन्न लोग फिल्मों का निर्माण, निर्देशन, कहानी व पटकथा लेखन,
संवाद लेखन अकेले कर रहे हैं। इसका अर्थ यह है कि फिल्म के सफलता की बागड़ौर वे अपने हाथों में रखते हैं। व्यावसायिक सफलता
की सीढ़ी उन्हें पता होती है, अतः ऐसे निर्माता-निर्देशक दूसरों के बलबूते पर अपनी
फिल्म को दांव पर लगाना पसंद नहीं करते हैं। कभी-कभार ऐसा भी होता है कि कहानी का
लेखक कोई और होता है, निर्माता-निर्देशकों को उसकी कहानी पसंद आती है परंतु उसमें
व्यावसायिक परिवर्तन की आवश्यकता होती है। लेखक से यह व्यावसायिक परिवर्तन संभव
नहीं है तो वे उससे उस कहानी के अधिकार खरीद लेते हैं, अपने हिसाब से उसमें
परिवर्तन करते हुए निर्देशन करते हैं। ऐसी स्थिति में लेखक से अगर छूटकारा पाना है
तो सीधे उसे उसका मूल्य चुका दिया जाता है और निर्माता-निर्देशक अपने नाम से कहानी
करवा देते हैं या लेखक ने ऐसा करने से मना किया तो वे उसकी अनुमति से इस कहानी से
प्रभावित (Adoption) होकर
इस फिल्म को बनाया जाता है, इसका जिक्र और आभार फिल्म के आरंभ में किया जाता है।
ऐसी स्थितियों में निर्देशकों को मूल कहानी में परिवर्तन और अपने हिसाब से कहानी
को गढ़ने तथा उसका अंत करने की अनुमति होती है। आजकल ऐसी फिल्मों का प्रचलन अधिक
है। अर्थात् निर्देशन की जिम्मेदारी यह होती है कि लिखित कहानी को फिल्मी फॉर्म मे
रूपांतरित करते वक्त उसे सफलता की सीढ़ी तक लेकर जाना। संपूर्ण आलेख पढने के लिए 'अपनी माटी' ई-पत्रिका की लिंक दे रहा हूं -फिल्म निर्देशन:तकनीक और कला -डॉ.विजय शिंदे http://www.apnimaati.com/2016/11/blog-post_73.html
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