सुदामा पांड़ेय ‘धूमिल’ जी का नाम हिंदी साहित्य में
सम्मान के साथ लिया जाता है। तीन ही कविता संग्रह लिखे पर सारी प्रजातांत्रिक
व्यवस्था और देश की स्थितियों को नापने में सफल रहें। समकालीन कविता के दौर में एक
ताकतवर आवाज के नाते इनकी पहचान रही हैं। इनकी कविताओं में सहज, सरल और चोटिल भाषा
के वाग्बाण हैं, जो पढ़ने और सुननेवाले को घायल करते हैं। कविताओं में संवादात्मकता है,
प्रवाहात्मकता है, प्रश्नार्थकता है। कविताओं को पढ़ते हुए लगता है कि मानो हम ही अपने अंतर्मन से संवाद
कर रहे हो। समकालीन कविता के प्रमुख आधार स्तंभ के नाते धूमिल ने
बहुत बढ़ा योगदान दिया है। उनकी कविता में राजनीति पर जबरदस्त आघात है। आजादी के
बाद सालों गुजरे पर आम आदमी के जीवन में कोई परिवर्तन नहीं हुआ, अतः सारा देश
मोहभंग के दुःख से पीड़ित हुआ। इस पीड़ा को धूमिल ने ‘संसद से सड़क तक’, ‘कल सुनना
मुझे’ और ‘सुदामा पांड़े का प्रजातंत्र’ इन तीन कविता संग्रहों की कई
कविताओं के माध्यम से व्यक्त किया है। उनकी कविता में पीड़ा और आक्रोश देखा जा सकता
है। आम आदमी का आक्रोश कवि की वाणी में घुलता है और शब्द रूप धारण कर कविताओं के
माध्यम से कागजों पर उतरता है। बिना किसी अलंकार, साज-सज्जा के सीधी, सरल और सपाट
बयानी आदमी की पीड़ाओं को अभिव्यक्त करती है। धूमिल का काव्य लेखन जब चरम पर था तब
ब्रेन ट्यूमर से केवल 38 वर्ष की अल्पायु में उनकी मृत्यु होती है। तीन कविता
संग्रहों के बलबूते पर हिंदी साहित्य में चर्चित कवि होने का भाग्य धूमिल को
प्राप्त हुआ है। "सुदामा
पांड़ेय ‘धूमिल’ हिंदी की समकालीन कविता के दौर के मील के पत्थर सरीखे कवियों में एक है। उनकी कविताओं में आजादी के सपनों के मोहभंग की पीड़ा और आक्रोश की सबसे सशक्त अभिव्यक्ति मिलती है। व्यवस्था जिसने जनता को छला है, उसको आइना दिखाना मानों धूमिल की कविताओं का परम लक्ष्य है। …..सन 1960 के बाद की हिंदी कविता
में जिस मोहभंग की शुरूआत हुई थी, धूमिल उसकी अभिव्यक्ति करनेवाले अंत्यत प्रभावशाली कवि है। उनकी कविता में परंपरा, सभ्यता, सुरुचि, शालीनता और भद्रता का विरोध है, क्योंकि इन सबकी आड़ में जो हृदय पलता है, उसे धूमिल पहचानते हैं। कवि धूमिल यह भी जानते हैं कि व्यवस्था अपनी रक्षा के लिए इन सबका उपयोग करती है, इसलिए वे इन सबका विरोध करते हैं। इस विरोध के कारण उनकी कविता में एक प्रकार की आक्रामकता मिलती है। किंतु उससे उनकी कविता की प्रभावशीलता बढ़ती है। धूमिल अकविता आंदोलन के प्रमुख कवियों में से एक हैं। धूमिल अपनी कविता के माध्यम से एक ऐसी काव्य भाषा विकसित करते हैं जो नई कविता के दौर की
काव्य-भाषा की रुमानियत, अतिशय कल्पनाशीलता और जटिल बिंबधर्मिता से मुक्त है। उनकी भाषा काव्य-सत्य को जीवन सत्य के अधिकाधिक निकट लाती है। उन्हें
मरणोपरांत 1979 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।" प्रस्तुत आलेख 'रचनाकार' ई-पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। आगे पढने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें - http://www.rachanakar.org/2017/04/blog-post_31.html
रचनाकार में प्रस्तुत आलेख प्रकाशित है परंतु वहां पर यह आकृतियां जोडी नहीं है अतः इसे यहां पर दे रहा हूं।
धूमिल के कविताओंकी संवेदना और ‘मोचीराम’ कविता की तुलना
धूमिल के कविताओं की मूल संवेदना ‘मोचीराम’ में है या नहीं है,की तुलना
रचनाकार में प्रस्तुत आलेख प्रकाशित है परंतु वहां पर यह आकृतियां जोडी नहीं है अतः इसे यहां पर दे रहा हूं।
धूमिल के कविताओंकी संवेदना और ‘मोचीराम’ कविता की तुलना
धूमिल के कविताओं की मूल संवेदना ‘मोचीराम’ में है या नहीं है,की तुलना
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