गुरुवार, 19 मार्च 2020

महाराजा सयाजीराव : चरित्रसंपन्न, अनासक्त और संप्रभु राजा - बाबा भांड



छत्रपति शाहू महाराजा के कालखंड में बड़े बाजीराव की मराठी सेना ने दिल्ली तक कुच किया था। उस समय मराठी सेना के सेनापति खंडेराव दाभाडे ने गुजरात में मौजूद मोगलों को सीधे काठीवाड तक पीछे धकेलने की शूरता दिखाई थी। उस समय उनके साथ दमाजीराव गायकवाड एक मराठा सरदार थे। वे पुणे जिले हवेली तहसिल के भरे गांव के थे। आगे चलकर वे खेड तहसिल के दावडी गांव में रहने के लिए गए। उनके वंश के आरंभिक पुरुष का नाम नंदाजी था। वे भोर रियासत में किलेदार थे। सन 1720 को राक्षसभुवन की लड़ाई में मराठों ने निजाम को पराजीत किया था। मराठी सेना के साथ नंदाजी का पोता दमाजी गायकवाड भी था। दमाजी की बहादुरी को देखकर महाराजा शाहू ने दमाजी को शमशेर बहादुर किताब बहाल किया। इसके बाद खंडेराव दाभाडे इस मराठी सेना के सेनापति ने गुजरात के मोगलों का पराजय करते हुए उन्हें काठीवाड तक भागने के लिए मजबूर किया। इस जीत में उनके साथ दमाजीराव गायकवाड के बेटे पिलाजी की मौजूदगी थी।  सन 1720 में पिलाजीराव ने मोगलों के कब्जेवाले सोनगढ़ पर जीत हासिल की। पहाड़ पर किला बनाया और यहीं से गायकवाड परिवार की सत्ता की स्थापना गुजरात में हुई। आगे चलकर पिलाजीराव ने गुजरात में बडोदा तक मराठी सत्ता का विस्तार किया। और बडोदा रियासत में गायकवाडों के राज्य का आरंभ हुआ।
उस कालखंड में विदेशों से अंग्रेजी व्यापारी हिंदुस्तान में व्यापार करने के लिए आ रहे थे।  उनके द्वारा व्यापार हेतु ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापन की गई और कंपनी ने हिंदुस्तान के तटीय इलाकों में धीरे-धीरे पैर फैलाना शुरू किया। वैसे ही उनका विस्तार गुजरात में भी होने लगा। गायकवाडों की भी सत्ता गुजरात में विस्तारीत हो रही थी। समय-समय पर इन दो सत्ताओं के बीच संघर्ष भी होता रहा। सन 1779 में पेशवों की गुजरात में अंग्रेजों के ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ लड़ाई हो गई। उस समय बडोदा के तत्कालीन महाराज फत्तेसिंह गायकवाड ने ब्रिटिश जनरल गार्ड के साथ दोस्ती का एक कदम आगे बढ़ाया था। पेशवों के विरोध में एक मराठी सरदार हमें मदत कर रहा है यह ईस्ट इंडिया कंपनी के चालाख अधिकारियों ने पहचान लिया। ब्रिटिशों ने एक देशी मछली हमारे जाल में फंस रही है यह देखकर इस मौके का तुरंत लाभ उठाते हुए बडोदा रियासत की ओर दोस्ती और सहयोग हेतु पहल की।
बाबा भांड द्वारा लिखे मराठी आलेख का यह अनुवाद है। इसे पूर्ण पढने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें - महाराजा सयाजीराव : चरित्रसंपन्न, अनासक्त और संप्रभु राजा

मंगलवार, 17 मार्च 2020

विवेकी राय के साहित्य में नारी शिक्षा


भारत प्रगतिशील देश है और अब उसके प्रगति की गति तेज हुई है। सामाजिक जीवन में शिक्षा ही अकेला ऐसा मार्ग है जो प्रत्येक व्यक्ति को सफलता के रास्तों पर लेकर जा सकता है। स्त्रियां भी समाज का अंग है, अतः उन्हें भी जिंदगी में सफल बनना है, स्वाभिमानी जीवन जीना है तो शिक्षित होकर आत्मनिर्भर होना पेगा। उनकी इस प्रकार की आत्मनिर्भरता एक प्रकार से पूराने सामजिक ढांचे के लिए चुनौती होगी लेकिन व्यापक समाजहित को ध्यान में रखते हुए ऐसी चुनौती देना पेगा। पुरुषों की एकाधिकारशाही, गलत विचार प्रणाली और गंदी सोच को चुनौती देना अब आवश्यक बना है। विवेकी राय के साहित्य में स्त्रियों के वैचारिक परिवर्तन और शिक्षित बनने की प्रक्रिया के आरंभिक दिनों का वर्णन है, जो सभ्यता, संस्कृति, स्वाभिमान और आत्मनिर्भरता की मांग को उजागर करता है।
समाज के दो हिस्सों में आधे पुरुष और आधी नारियां रहती है। लेकिन आज भी पुरुष प्रधान व्यवस्था ने उसे इतना महत्त्व नहीं दिया जितना देना चाहिए था। उसके प्रति परंपरागत दृष्टि से देखा और सोचा जाता है। अगर सामाजिक विकास में परिपूर्णता लानी है तो नारी को शिक्षा के साथ अन्य अधिकारों में भी समानता का हकदार बनाना चाहिए। घर में तो उसे प्रतिष्ठित किया जाता हैं किंतु समाज में नहीं। स्त्रियों के शील संरक्षण के लिए परदा प्रथा और घर से बाहर न निकलना जैसे नियम बनाए गए। आज वैसी स्थिति नहीं है फिर भी नारी के प्रति पुरुष की दृष्टि अभी भी बदली नहीं है।
समाजहित इसी में है कि नारी की पूनर्प्रतिष्ठा करें। ‘‘नारी को भवतारिणी कहा गया है, जो उचित ही है। पुरुष को अपनी जीवन नौका को  इस भवसागर से पार करने के लिए स्त्री-रूपी दांड की आवश्यकता अपरिहार्य है।’’1 पुरुष की जन्मदात्री और सहधर्मिनी वही है। अतः उसे शिक्षित बनाने या प्रतिष्ठित करने में उसे नहीं तो पुरुष के लिए ही लाभदायी है। पारिवारिक और सामाजिक जिम्मेदारियों को कुशलता से निभाने के लिए उसका शिक्षित होना नितांत जरूरी है। उसे न केवल शिक्षा में बल्कि सामाजिक व्यवस्था में प्रतिष्ठित करने की आवश्यकता है। विवेकी राय ने नारी की इसी आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए शिक्षित, अर्द्धशिक्षित और अशिक्षित स्त्रियों का चित्रण करते हुए शिक्षा व्यवस्था और नारी के परस्पर संबंध पर प्रकाश डाला है। संपूर्ण आलेख पढने के लिए 'अपनी माटी' के शिक्षा विशेषांक की इस लिंक को क्लिक करें - विवेकी राय के साहित्य में नारी शिक्षा