संसार में मनुष्य का आगमन और बुद्धि नामक तत्व के आधार पर एक-दूसरे पर वर्चस्व स्थापित करने की अनावश्यक मांग सुंदर दुनिया को बेवजह नर्क बना देती है। सालों-साल से एक मनुष्य मालिक और उसके जैसा ही दूसरा रूप जिसके हाथ, पैर, नाक, कान... है वह गुलाम, पीडित, दलित, कुचला। दलितों के मन में हमेशा प्रश्न उठता है कि ऐसा क्यों? पर उनके ‘क्यों’ को हमेशा निर्माण होने से पहले मिटा दिया जाता है। परंतु समय की चोटों से, काल की थपेडों से पीडित भी अपनी पीडाओं को वाणी दे रहा है। एक की गुंज सभी सुन रहे हैं और अपना दुःख भी उसी तरीके का है कहने लगे हैं। शिक्षा से हमेशा दलितों को दूर रखा गया लेकिन समय के चलते परिस्थितियां बदली और चेतनाएं जागृत हो गई। एक, दो, तीन... से होकर शिक्षितों की कतार लंबी हो गई और अपने अधिकारों एवं हक की चेतना से आक्रोश प्रकट होने लगा। कइयों का आक्रोश हवा में दहाड़ता हुआ तो किसी का मौन। अभिव्यक्ति और प्रकटीकरण का स्वरूप अलग रहा परंतु वेदना, संघर्ष, प्रतिरोध, नकार, विद्रोह, आत्मपरीक्षण सबमें बदल-बदल कर आने लगा। ईश्वर से भेजे इंसान एक जैसे, सबके पास प्रतिभाएं एक जैसी। अनुकूल वातावरण के अभाव में दलितों की प्रतिभाएं धूल में पडी सड़ रही थी लेकिन धीरे-धीरे संघर्ष से तपकर निखरने लगी। ज्ञान का शिवधनुष्य हाथ में थाम लिया और एक-एक सीढी पर लड़खड़ाते कदम ताकत के साथ उठने लगे, अपने हक और अधिकार की ओर। एक के साथ दो और दो के साथ कई। संख्या बढ़ी और धीरे-धीरे मुख्य प्रवाह के भीतर समावेश। यह प्रक्रिया दो वाक्य या एक परिच्छेद की नहीं, कई लोगों के आहुतियों के बाद इस मकाम पर पहुंचा जा सका है। प्रत्येक दलित की कहानी अलग और संघर्ष भी अलग। उसके परतों को बड़े प्यार से उलटकर उनकी वेदना, विद्रोह, नकार और संघर्ष को पढ़ना बहुत जरूरी है ताकि प्रत्येक दलित-शोषित-गुलाम व्यक्ति के मूल्य को आंका जा सके। भारतीय साहित्य की विविध भाषाओं में बड़ी प्रखरता के साथ दलितों के संघर्ष की अभिव्यक्ति हुई है और हो रही है। हिंदी साहित्य में देर से ही सही पर सार्थक और आत्मपरीक्षण के साथ दलितों के संघर्ष का चित्रण होना उनके उज्ज्वल भविष्य का संकेत देता है। एक की चेतना हजारों को जागृत करती है एक का विशिष्ट आकार में ढलना सबके लिए आदर्श बनता है। जागृति के साथ आदर्शों को केंद्र में रखकर अपने जीवन के प्रयोजन अगर कोई तय करें तो सौ फिसदी सफलता हाथ में है। और आदर्श अपनी जाति-बिरादरी का हो तो अधिक प्रेरणा भी मिलती है। संघर्ष और चोट से प्राप्त सफलता कई गुना खुशी को बढ़ा भी देती है।
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