कहानी का सृजक अपनी
प्रतिभा के बलबूते पर कहानी की रचना करता है। उसका यह लेखन अपने अंतर की प्रेरणा
का स्वरूप होता है। लेखक जो लिखता है उसका व्यावसायिक लाभ कमाने का उद्देश्य कम
होता है, अर्थात् उसका लेखन करने का उद्देश्य स्वांतः सुखाय अधिक होता है। लेकिन
यहीं कहानियां फिल्मों के भीतर पटकथा का स्वरूप धारण कर जब परदे तक का सफर तय करना
शुरू करती है तब हर जगह पर उसके साथ व्यावसायिकता जुड़ जाती है। अर्थात् फिल्मों
में पटकथा लिखना भी व्यावसायिक मांग की तहत आता है। पटकथा लेखक के हाथों में कहानी
सौंपी जाती है और उसे कहा जाता है कि फिल्म के लिए इसकी पटकथा तैयार करें। बहुत
जगहों पर ऐसे पाया जाता है कि मूल कहानी का लेखक और पटकथा लेखक दोनों एक ही है।
मूल लेखक ही कहानी को पटकथा के स्वरूप में ढालता है। व्यावसायिक धरातल पर उस लेखक
के लिए लेखक और पटकथा लेखक दोनों का मानधन भी दिया जाता है। फिल्मों के अनुकूल
पटकथा लिखना एक कला है। आज-कल हमारे आस-पास फिल्मों के अलावा ऐसे कई मनोरंजन के
साधन, टी. वी. चॅनल्स और अन्य क्षेत्र है वहां पर पटकथा लेखन की आवश्यकता पड़ती है।
प्रतिभावान और इस क्षेत्र में रुचि रखनेवाले लोगों के लिए पटकथा लेखन करना आय के
स्रोत की उपलब्धि करवाता है। प्रस्तुत आलेख 'रचनाकार' ई-पत्रिका में प्रकाशित हुआ है, आगे पढने के लिए यहां पर क्लिक करें - http://www.rachanakar.org/2017/02/blog-post_57.html
मेरे ब्लॉग पर स्वलिखित हिंदी भाषा की रचनाएं हैं, जिसमें समीक्षात्मक आलेख, लेख,अनुवाद और सृजनात्मक रचनाएं हैं। साथ ही इस ब्लॉग पर ई पत्रिकाओं में प्रकाशित साहित्य के लिंक भी मौजूद है। आप रचनाओं को पढने के लिए दाएं 'रचनाएं' में जाकर मनपसंद विधा को क्लिक करें। सीधे ब्लॉग पर वह रचना या उसकी लिंक आएगी। लिंक पर दुबारा क्लिक करने पर मूल ई-पत्रिका में प्रकाशित रचना तक आप पहुंच सकते हैं।
मंगलवार, 21 फ़रवरी 2017
रविवार, 5 फ़रवरी 2017
पटकथा कैसे लिखें?
![[image%255B3%255D.png]](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjRM6YFmsQzzgpXG7S58FGCOJTd1fW1PfBGV8yg62LS1jm575t-pHSHrZsX3Zqtb2d4_i-xnVBPs-56gcY06cbvoyQoo7m5mRDAXXttTiA89BXyoQPO9wV3qvrsHl2ijjuWk0v2TW6OFYk/s400/image%25255B3%25255D.png)
पटकथा
लेखन एक चरणबद्ध प्रक्रिया है। इसके कुछ मौलिक सिद्धांत हैं, जिसे जानना जरूरी है। कहानी या कथा किसी की भी हो सकती है। एक पटकथाकार केवल उस कहानी या कथा को एक निश्चित उद्देश्य यानी फिल्मों के निर्माण के लिए लिखता
है, जो पटकथा (Screenplay) कहलाती
है। और दूसरी ओर एक कथाकार स्वयं पटकथाकार
भी हो सकता है यानी कहानी भी उसकी और पटकथा भी उसी की। सवाल है कि पटकथा लेखन के
सिद्धांत क्या हैं? यह कैसे लिखें? क्या लिखें और क्या न लिखें? एक फ़िल्मी कथानक का बीजारोपण कैसे होता है, इसका
प्रारूप कैसा होता है? इसे निम्नानुसार समझाया जा सकता हैं। यह आलेख रचनाकार ई-पत्रिका में प्रकाशित है आगे पढने के लिए इस लिंक पर जाए - http://www.rachanakar.org/2017/02/blog-post_86.html
बुधवार, 1 फ़रवरी 2017
फिल्म निर्माण के चरण
लेखक के द्वारा लिखी
कहानी से परदे पर उतरनेवाली फिल्म तक की प्रक्रिया बहुत लंबी है। यह प्रक्रिया
विविध चरणों, आयामों और संस्कारों से अपने मकाम तक पहुंचती है। एक लाईन में बनी
फिल्म की कहानी या यूं कहे कि दो-तीन पन्नों में लेखक द्वारा लिखी कहानी को फिल्म
में रूपांतरित करना एक प्रकार की खूबसूरत कला है। इस रूपांतर से न केवल लेखक चौकता
है बल्कि फिल्म के साथ जुड़ा हर शख्स चौकता है। टूकड़ों-टूकड़ों में बनी फिल्म जब एक
साथ जुड़ती है तो एक कहानी का रूप धारण करती है। फिल्मों का इस तरह जुड़ना दर्शकों
के दिलों-दिमाग पर राज करता है। लेखक से लिखी कहानी केवल शब्दों के माध्यम से बयान
होती है परंतु फिल्म आधुनिक तकनीक के सहारे से ताकतवर और प्रभावी बनती है। "सिनेमा ने
परंपरागत कला रूपों के कई पक्षों और उपलब्धियों को आत्मसात कर लिया
है – मसलन आधुनिक उपन्यास की तरह यह मनुष्य की भौतिक क्रियाओं
को उसके अंतर्मन से जोड़ता है, पेटिंग
की तरह संयोजन करता है और छाया तथा
प्रकाश की अंतर्क्रियाओं को आंकता है।
रंगमंच, साहित्य, चित्रकला,
संगीत की सभी
सौंदर्यमूलक विशेषताओं और उनकी मौलिकता से सिनेमा आगे निकल गया है। इसका
सीधा कारण यह है कि सिनेमा में साहित्य (पटकथा, गीत), चित्रकला
(एनीमेटेज कार्टून, बैकड्रॉप्स), चाक्षुष
कलाएं और रंगमंच का अनुभव, (अभिनेता, अभिनेत्रियां)
और ध्वनिशास्त्र
(संवाद,
संगीत) आदि शामिल हैं। आधुनिक तकनीक की
उपलब्धियों का सीधा लाभ सिनेमा लेता है।" (संदर्भ
विकिपिड़िया) यहां हमारा उद्देश्य सिनेमा निर्मिति का संक्षिप्त परिचय करवाना
है और इस परिचय के दौरान फिल्म निर्माण के चरण और फिल्म निर्माण की प्रक्रिया
अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। फिल्मों का पांच चरणों में निर्माण होता है। विकास,
पूर्व निर्माण, निर्माण, उत्तर उत्पादन (पोस्ट प्रोड़क्शन), वितरण व प्रदर्शनी इन
पांच चरणों के तहत फिल्में बनती हैं। इन पांच चरणों का विश्लेषण पढने के लिए इस लिंक पर जाए http://www.researchfront.in/23%20OCT-DEC%202016/14.pdf
सदस्यता लें
संदेश (Atom)