‘आधी रात की संतानें’ उपन्यास में भी सलमान रश्दी ने
भारत-पाक-बांग्लादेश के परिदृश्य के लगभग 65 वर्ष की घटनाओं को पकड़ कर एक पहेली
में बांधा है, प्रतीकात्मकता दी है और ‘कोडिंग’ है। पाठक के लिए यह उपन्यास आवाहन
है उस दृष्टि से कि पहेली सुलझाओं, प्रतीकों के अर्थ जानों और ‘डिकोडिंग’ करो।
1915 को शुरू होने वाला यह उपन्यास
1977-78 तक की घटनाओं को बांधता है। आदम अजिज से शुरू होकर- अमीना अजिज
(सिनाई), अहमद सिनाई, सलीम सिनाई और आदम सिनाई तक पहुंचता है। परंतु यह सफर आसान
नहीं अनेक कोनों, घुमाओं एवं मोडों से होकर चरमसीमा तक पहुंचता है। इन पात्रों के
साथ अनेक पात्र, उपपात्र जुड़कर आते हैं और प्रतीकात्मक तौर पर हिंदुस्तान से
निर्मित भारत, पाकीस्तान, बांग्लादेश तथा अन्य छोटे-मोटे हिस्सों को ‘आधी रात की
संतानें’ बनाकर उसकी अंदरूनी परिस्थिति का वर्णन करते हैं। लेखक ने मानवीय पात्रों
को देश-प्रदेश से जोड़ कर प्रदेशवाद, सांप्रदायिकता, विभाजन, अलगाववाद, युद्ध,
संघर्ष, अमीरी-गरीबी, नंपुसकता, गांधीजी का खून, आपातकाल... आदि घटनाओं का विड़ंबनात्मक
तरीके से वर्णन किया है। प्रस्तुत किताब बेस्ट सेलर बुकर प्राप्त किताब रही है और दो-तीन साल
पहले इस पर 'मिडनाईट चिंल्ड्रन' फिल्म भी बनी है। एक उत्कृष्ट किताब की
समीक्षा पाठकों तक पहुंचाने का प्रयास है। समीक्षा को पढकर पाठकों का फिल्म
देखने का अगर मन कर रहा है तो यु टूब पर फिल्म भी देख सकते हैं। 'आधी रात की संतानें' किताब को केंद्र में रख कर समीक्षा की है और उक्त समीक्षा 'शुरूआत' ई-पत्रिका में प्रकाशित हुई है। मेरे दोस्तों के लिए उसकी लिंक यहां दे रहा हूं। लिंक है - आधी रात की नाजायज संतानों का विड़ंबनात्मक ... इस लिंक को क्लिक करें आप मूल समीक्षा तक पहुंच सकते हैं।
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