रविवार, 31 मार्च 2013

'गुडिया' को देखते हिंदी साहित्य का भविष्य

9 टिप्‍पणियां:

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' ने कहा…

बहुत उम्दा प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...

साहित्य और समीक्षा डॉ. विजय शिंदे ने कहा…

प्रसन्न वदन जी मैत्रेयी पुष्पा जी के 'गुडिया भीतर गुडिया' पुस्तक की समीक्षा आपको पसंद आयी और प्रतिक्रिया दी धन्यवाद।

Amrita Tanmay ने कहा…

अत्यंत प्रभावी और आकर्षक समीक्षा है ये . शिंदे जी आपकी कलम हर पक्ष से न्याय कर रही है ..बहुत-बहुत बधाई..

साहित्य और समीक्षा डॉ. विजय शिंदे ने कहा…

अमरिता जी आभार। आपकी टिप्पणी से मेरा हौसला बढेगा और नव-नवीन किताबों को पाठकों एवं अपने दोस्तों तक पहुंचा सकूं।

Shikha Kaushik ने कहा…

बहुत सही व् सार्थक प्रस्तुति . हार्दिक आभार हम हिंदी चिट्ठाकार हैं

BHARTIY NARI
PLEASE VISIT .

कविता रावत ने कहा…

बहुत बढ़िया प्रभावी समीक्षा ...

साहित्य और समीक्षा डॉ. विजय शिंदे ने कहा…

डॉ. शिखा जी प्रणाम। सही और सार्थक समीक्षा कहने हेतु। आप मेरे ब्लॉग से होकर मूल ई-पत्रिकाओं तक पहुंच सकती हैं जहां पर 'पिछले पन्ने की औरतें' (डॉ. शरद सिंह), 'हद हो गई', 'एक लडकी एक लडका' जैसे नारियों पर केंद्रित आलेख मिलेंगे। हो सकता है यह भारतीय नारी मंच के लिए उपयोगी हो। 'भारतीय नारी' ब्लॉग को पढता हूं अब नियमित प्रतिक्रियाएं देता रहूंगा।
ब्लॉग drvtshinde.biogspot.com

Shalini kaushik ने कहा…

VIJAY JI AAPKEE POST KO WOMAN ABOUT MAN PAR PRAKASHIT KIYA HAI .AUR AAPKI SAMEEKSHA NE PRABHAVIT KIYA TABHI HAMNE AISA KIYA .AAPKE HAMARE BLOG PAR AANE KE LIYE AABHAR .

संजय भास्‍कर ने कहा…

आकर्षक समीक्षा है ये विजय जी