सोमवार, 16 जून 2014

वीरेंद्र जैन का 'शब्द-बध' विचार पुनर्विचार

                प्रिय दोस्तों बहुत दिनों बाद आपसे मिल रहा हूं और कोई रचना आपके पास भेज रहा हूं। आपकी रचनाएं बिच-बिच में देखी भी कुछ पढी भी। पर संदेशों और प्रतिक्रिया के साथ मुलाकात नहीं कर पाया क्षमा चाहता हूं। इन दिनों में गायब होकर डॉ. नरेंद्र दाभोलकर जी की मराठी किताब 'तिमिरातुनी तेजाकडे' का हिंदी अनुवाद का कार्य पूरा किया है। यह किताब जल्दी ही 'राजकमल' प्रकाशन, दिल्ली से आ जाएगी। इसे पूरा करने में मेरा काफी समय गया और आपके अभाव को महसूस करता रहा। जैसे ही काम पूरा किया कॉलेज को छुट्टियां लगी और इंटरनेटीय दुनिया बंद हो गई या कहे कि गति बहुत कम हो गई। खैर गांव में भी लिखना और पढना जारी रहा। उसीका नतीजा है आपको 'शब्द-बध' उपन्यास की समीक्षा भेज रहा हूं।
              वीरेंद्र जैन ने लेखकीय और प्रकाशन जगत् की वास्तविकताओं इस किताब में सामने रखा है। 'रचनाकार' ई-पत्रिका में प्रस्तुत समीक्षा प्रकाशित हो गई है उसकी लिंक आपके लिए दे रहा हूं  - पुस्तक समीक्षा - शब्द-बध - डॉ. विजय शिंदे - वीरेंद्र जैन का 'शब्द-बध' विचार-पुनर्विचार
प्रस्तुत आलेख वेब वार्ता से प्रकाशित हुआ है उसकी लिंक आगे दे रहा हूं - पुस्तक समीक्षा: शब्द-बध - WebVarta | ncr news ...

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