'तकलीफ', 'तुम्हारा
रोना', 'कोई लडकी' और 'आपको भी' नव्या ई-पत्रिका में प्रकाशित चार कविताएं हैं। मनुष्य हमेशा प्रेम
करता है और उसके जीवन में प्रेम को अहं स्थान भी है। ऐसे ही कुछ संवेदनशील, भावुक क्षणों की अभिव्यक्ति इन कविताओं में है। आपको कविताएं पसंद
आएंगी। कविता की लिंक यहां पर दे रहा
हूं उसे क्लिक कर मूल कविताओं तक आप
पहुंच सकते हैं। लिंक http://www.nawya.in/hindi- sahitya/ इस लिंक पर कविताओं का दिखना बंद हुआ है, अतः पाठकों की सुविधा के लिए यह चारों कविताएं निचे दे रहा हूं -
तकलीफ
तुम्हें तकलीफ देकर
खुद भी तकलीफ पाता हूं।
आंसू तो तुम्हारे
निकलते हैं,
बह मैं जाता हूं।
रोती तुम हो
बिखर मैं जाता हूं।
यह कैसी बीमारी है ?
भीतर-बाहर जहां भी ढूंढू,
तुम्हें ही पाता हूं।
तुम्हारा रोना
मेरा मनसुबा नहीं था,
तुम्हें तकलिफ देना।
मौज-मस्ती कर चाहता था,
थोडा सुख पाना।
मजाक-मस्ती से
सचमुच तुम रोने लगी
और, और....
तुम से जिहादा मुझे
तकलिफ होने लगी।
पूछो ना‘क्यों
?’
तुमने पूछा
‘दोस्त क्यों ?’
मेरे दिल से आवाज निकली
‘तुम शरीर से मुझसे हो
बहुत दूर।
इसीलिए तुम्हारे रोने
पर,
नजदीक खिंचकर
न समझा सकता हूं,
न प्यार कर सकता हूं।
तुम्हारा सर सीने से लगा
कर,
न आंसू पोंछ सकता हूं।
गीले-गर्म आंसू से,
गुलाबी होठों के....
स्पर्श से,
न शिकायत सुन सकता हूं।
इसीलिए हे प्रिये,
बता रहा हूं,
बहुत-बहुत ज्यादा....
दुःख देकर गया,
रूह के पास होकर भी
शरीर से दूर होना।
मेरे बिन अकेले-अकेले
तुम्हारा रोना।’
कोई लड़की
सोचा नहीं था,
कभी ऐसा भी सपना।
कोई लड़की,
मुझे प्यार देगी इतना।
शद्बों का पुजारी हूं।
भावनाओं को,
समझ सकता हूं।
सूक्ष्म अर्थ,
बारिकी से,
पकड़ सकता हूं।
परंतु,
‘मैं तुमसे प्रेम करती
हूं’में
कौन-सी ताकद,
भावना, अर्थ है
पता नहीं था।
मुझे कोई लड़की,
इतना प्यार करेगी ?
यह सोचा नहीं था।
हे देवी ! शुक्रिया,
जिंदगी में आप
खूशियां लेकर आई।
अनछुए, अनजाने,
अपरिचित सुखों को,
मुझ पर
बरसा कर गई।
आपको भी
आपसे पूछ कर
‘खुशी’और‘कामयाबी।’
घंटों सफर कर,
मिली थी अभी-अभी।
मैं धन्य हुआ,
उनको भेजा मेरे पास।
दोस्त से इतना प्रेम,
दोनों अमूल्य रत्न त्याग
अपनों का ध्यास।
मैंने भी
उन दोनों को भेजा,
आपके पास।
उन दोनों से
सुख, सम्मान और सबकुछ मिले
आपको भी।
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