फिल्म के निर्माण की अनेक महत्त्वपूर्ण कड़ियों में से
अहं कड़ी हैं - संवाद। संवाद सृजन प्रक्रिया के साथ जुड़नेवाली कला है। संवादों के
माध्यम से कहानी को कथात्मक रूप से संवादात्मक और नाटकीय रूप प्राप्त होता है,
जिसका उपयोग अभिनय के दौरान होता है। फिल्मों की व्यावसायिक और कलात्मक सफलता भी
तस्वीरों की सूक्ष्मताओं और संवाद के आकर्षक होने पर निर्भर होती है। न केवल भारत में बल्कि विश्व सिनेमा में आरंभिक फिल्में अवाक (बिना आवाज) की
थी। इन्हें सवाक (वाणी के साथ, आवाज के साथ) होने में काफी समय लगा। हालांकि
सिनेमा के निर्माताओं की मंशा इन्हें आवाज के साथ प्रदर्शित करने की थी परंतु
तकनीकी कमजोरियां और कमियों के चलते यह संभव नहीं हो सका। धीरे-धीरे दर्शकों का और
सारी दुनिया का सिनेमा के प्रति आकर्षण उसमें नई-नई खोजों से इजाफा करते गया और
फिल्में सवाक बनी और आगे चलकर रंगीन भी हो गई। चित्रों के माध्यम से प्रकट
होनेवाली कथा-पटकथा संवाद के जुड़ते ही मानो लोगों के मुंह-जुबानी बात करने लगी।
लोग पहले से अधिक उत्कटता के साथ फिल्मों से जुड़ने लगे और विश्वभर में सिनेमा का
कारोबार दिन दुनी रात चौगुनी प्रगति करने लगा। फिल्मों के लिए चुनी कहानी को पटकथा
में रूपांतरित करने के लिए और पटकथा को संवादों में ढालने के लिए आलग-अलग
व्यक्तियों की नियुक्तियां होने लगी। इसमें माहिर लोग पात्रों के माध्यम से अपने
संवाद कहने लगे और आगे चलकर यहीं संवाद लोगों के दिलों-दिमाग की बात भी करने लगे।
संवादों का फिल्मों के साथ जुड़ते ही फिल्में सार्थक रूप में जीवंत होने की ओर और
एक कदम उठा चुकी। रचनाकार में प्रकाशित पूरा आलेख पढने के लिए इस लिंक पर जाए - फिल्मी संवाद के प्रकार और भाषा http://www.rachanakar.org/2017/03/blog-post_88.html
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बुधवार, 22 मार्च 2017
गुरुवार, 16 मार्च 2017
पटकथा लेखन का तकनीकी तरीका
पटकथा लेखन करना
मेहनत, अभ्यास, कौशल और सृजनात्मक कार्य है। कोई लेखक जैसे-जैसे फिल्मी दुनिया के
साथ जुड़ता है वैसे-वैसे वह पटकथा लेखन की सारी बातें सीख लेता है। पटकथा लेखक को
उसकी बारिकियां अगर पता भी न हो तो कम-से-कम उसे ऐसा लेखन करने की रुचि होनी
चाहिए। निर्माता-निर्देशक लेखक से अच्छी पटकथा लिखवा लेते हैं, कमियों को दुरुस्त
करने की सलाह देते हैं। हिंदी की साहित्यकार मन्नू भंड़ारी ने कई टी. वी.
धारावाहिकों के साथ फिल्मों हेतु बासु चटर्जी जी के लिए पटकथा लेखन किया। वे लिखती
हैं कि "इस विधा के सैद्धांतिक पक्ष की ए बी
सी डी जाने बिना ही मैंने अपना यह काम किया (कभी जरूरत हुई तो आगे भी इसी तरह
करूंगी) और इसलिए हो सकता है कि मेरी ये पटकथाएं इसके तकनीकी और सैद्धांतिक पक्ष
पर खरी ही न उतरें। फिर मैंने कभी यह सोचा भी नहीं था कि मुझे इन पटकथाओं को
प्रकाशित भी करना होगा।... मैंने तो इन्हें सिर्फ बासुदा के लिए लिखा था और उनकी
जरूरत (जिसे मैं जानती थी) के हिसाब से लिखा था, सैद्धांतिक पक्ष के अनुरूप
नहीं... (जिसे मैं जानती ही नहीं थी)।" (कथा-पटकथा, पृ. 11) खैर मन्नू
भंड़ारी पटकथा लिखना नहीं जानती थी परंतु उनमें पहले से मौजूद प्रतिभा, रुचि और
बासु चटर्जी का मार्गदर्शन सफल पटकथा लेखन करवा सका है। पटकथा लेखन के दो तकनीकी
तरीकें जो आमतौर पर फिल्मी दुनिया में अपनाए जाते हैं। एक है घटना-दर-घटना,
दृश्य-दर-दृश्य, पेज-दर-पेज लिखते जाना। इसे लेखन की गतिशील (रनिंग) शैली या
क्रमबद्ध तरीका कहा जाता है, और दूसरा तरीका है स्थापित लेखन तरीका। पूरा आलेख पढने के लिए 'रचनाकार' में प्रकाशित इस आलेख लिंक को क्लिक करें - http://www.rachanakar.org/2017/03/blog-post_93.html
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